बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 हिन्दी - साहित्यशास्त्र और हिन्दी आलोचना बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 हिन्दी - साहित्यशास्त्र और हिन्दी आलोचनासरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 हिन्दी - साहित्यशास्त्र और हिन्दी आलोचना- सरल प्रश्नोत्तर
त्रासदी विरेचन सिद्धान्त
प्रश्न- त्रासदी सिद्धान्त पर प्रकाश डालिए।
अथवा
'अरस्तु' के विरेचन सिद्धान्त का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
अथवा
अरस्तू के त्रासदी सिद्धान्त की विवेचना कीजिये।
उत्तर -
प्लेटो ने 'काव्य-कला पर आक्षेप लगाये थे और उसे भावनाओं को भड़काने वाली बताकर आदर्श राज्य के लिए अनुपयोगी बताया था।
"...in all of them poetry and waters the passions instead of drying them up."
इससे काव्य की उपयोगिता और महत्ता को गहरा आघात पहुँचा था। अरस्तू ने उन आरोपों को स्वीकार नहीं किया। उसने इनका विरोध करते हुए स्वीकार किया कि त्रासदी के द्वारा मनोविकारों का विरेचन किया जाता है क्योंकि त्रासदी से करुणा तथा त्रास का• उद्रेक होता है - "Through pity and fear effection of the proper purgation of these emotions." कहकर उसने यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि त्रासदी के मूलभाव भावों को उबुद्ध कर विरेचन पद्धति के द्वारा मानव मन का परिष्कार करते हैं, जैसे विरेचन से शरीर शुद्धि होती है।
विरेचन का अर्थ : यूनान की चिकित्सा पद्धति में विरेचन की चर्चा आयी है। अरस्तू द्वारा इसके प्रयोग का कारण यह प्रतीत होता है कि अरस्तू के पिता मेसोडोनिया के राज्य-चिकित्सक थे और अरस्तू ने स्वयं भी चिकित्सा की शिक्षा प्राप्त की थी। भारतीय चिकित्सा पद्धति में भी विरेचन का महत्व है, जिसक सामान्य अर्थ है - रेचक द्रव्यों द्वारा शरीर के मल, अनावश्यक, हानिकारक, स्वास्थ्य अहित कर तत्वों पदार्थ को शरीर से बाहर निकालना।
विरेचन की व्याख्याएँ : विरेचन की व्याख्याएँ विभिन्न प्रकार से की गयी हैं-
प्रो. मरे के अनुसार, यूनान में वर्षारम्भ में दिओन्युसस देवता के उत्सव की प्रथा प्रचलि इसमें प्रार्थना द्वारा पाप-शुद्धि की योजना थी।
विद्वान लिवी के अनुसार, त्रासदी की अवधारणा यूनानी अंधविश्वास पर आधारित है। धारणा थी कि ये उत्सव विपत्तियों का नाश करते हैं।
अरस्तू ने भी यह स्वीकार किया है- (राजनीति) हल की स्थिति से उत्पन्न आवेग के शमन के लिए भी यूनान में उद्दाम संगीत का उपयोग किया जाता था जो पहले आवेगों की वृद्धि करता था, फिर उन्हें शान्त कर देता था। अतः यूनान की धार्मिक प्रवृत्तियों में विकारों के शमन का सिद्धान्त मान्य होने के कारण, अरस्तू को 'विरेचन' सिद्धान्त की प्रेरणा मिली।
नीतिपरक व्याख्या : वारनेज आदि जर्मन विद्वानों ने अरस्तू द्वारा प्रयुक्त 'विरेचन' शब्द की नीतिपरक व्याख्या करते हुए इसे मनोविकारों की उत्तेजना के पश्चात् उद्वेग का शमन एवं उससे उत्पन्न मानसिक प्रसन्नता बताया है। त्रासदी जनित करुणा एवं त्रास के भाव (दुख वर्ग के मनोवेग) से दर्शकों के मन में इनके समान ही भाव जाग्रत एवं विकसित होते हैं और दर्शन उद्वेलित हो उठते हैं। पर ये भाव शीघ्र ही शान्त हो जाते हैं। इस प्रकार दर्शक नाटक के रूप में ट्रैजेडी देखकर अथवा काव्य के रूप में पढ़कर शान्ति का सुखद अनुभव करता है और उसके मन में करुणा एवं त्रास मनोवेगों का भय नहीं रह जाता।
कलात्मक व्याख्या : जर्मन कवि गेटे और अँग्रेजी में रोमांटिक कवियों में विरेचन सिद्धान्त के कला परक अर्थ के विशेष संकेत मिलते हैं। प्रो. बूचर का मत है कि " ट्रैजेडी का कर्त्तव्य-कर्म केवल करुणा या त्रास के लिए अभिव्यक्ति का माध्यम प्रस्तुत करना नहीं इन्हें एक सुनिश्चित कलात्मक परितोष प्राप्त करना है, इनको कला के माध्यम में ढालकर परिष्कृत तथा स्पष्ट करना है।' इस प्रकार प्रो. वूचर के अनुसर विरेचन का अर्थ है पहले मानसिक सन्तुलन और बाद में कलात्मक परिष्कार।
मानसिक व्याख्या : जर्मन विद्वान वारनेज के अनुसार मानव मन के अनेक मनोविकार वासना रूप में स्थित रहते हैं। उन्हें दमित के बदले सन्तुलित करना वांछनीय है। उसमें करुणा और त्रास नामक मनोवेग मूलतः दुःखद होते हैं। त्रासदी रंगमंच पर ऐसे द्रश्य प्रस्तुत करती हैं जिसमें ये मनोवेग अतिरंजित रूप में प्रस्तुत किये जाते हैं। उन्हें देखकर ये भाव पहले तो उद्वेलित होते हैं, तत्पश्चात् उपशमित हो जाते हैं। प्रेक्षक त्रासदी देखकर मानसिक शान्ति का सुखद अनुभव करता है। क्योंकि उसके मन में वासना रूप में स्थित करुणा तथा त्रास आदि मनोवेगों का दंश समाप्त हो जाता है। अतः विरेचन की मानसिक व्याख्या है- मनोविकारों की उत्तेजना के बाद उद्वेग का शमन और लज्जन्य मानसिक विशद्ता जिसमें भावात्मक रुग्णता दूर हो जाती है। --डॉ. एस. एस. गुप्त
विरेचन सिद्धान्त का स्वरूप : अरस्तू के विरेचन सिद्धान्त की व्याख्याओं के आधार पर यह माना गया है कि 'धार्मिक संगीत की चर्चा करके और 'मानसिक शुद्धि' की बात स्वीकार करके अरस्तू ने उसके धार्मिक और मानसिक रूप को स्वतः स्वीकार किया है। कलापरक अर्थ पर टिप्पणी करते हुए डॉ. एस. एस. गुप्त का मत है कि धर्मपरक, मानसिक तथा कलापरक तीनों अर्थो में निश्चय ही सत्य का अंश वर्तमान है। विरेचन के मानसिक अर्थ का समर्थन तो मनोविज्ञान भी करता दिखाई देता है। आधुनिक मनोविज्ञान 'कुण्ठा' की बात स्वीकार करते हैं। विशेषकर (फ्रायड) कुण्ठा से तात्पर्य अतृप्त 'वासनाओं' के आवेग से ही है। 'कुण्ठा' का निवारण या यों कहा जाय वासनाओं का उचित शमन या परिष्कार न हो तो ये आवेग मानसिक विकार बन जाते हैं। अतः मनोवेगों का परिष्कार शमन या उचित अभिव्यक्ति या परिष्कार में उसी प्रकार विरेचन भी कार्य करता है। अर्थात् प्रेक्षक की मानसिक पीड़ा जो उसके भीतर घुमड़ रही होती है, वह बाहर निकल जाती है। वारनेज ने इसकी व्याख्या करते हुए स्वीकार किया है कि मनोविकारों का बाहर निकलना ही नहीं, उनका सन्तुलन भी विरेचन के अन्तर्गत आता है।
विरेचन के अनुसार त्रासदी की कटुता का दंश नष्ट हो जाता है, उत्तेजना समाप्त होकर मनःशक्ति प्राप्त होती है, क्योंकि त्रासदी में 'त्रास' और 'करुणा' साथ-साथ चलते हैं। हम पीड़ापरक स्थिति में पड़े व्यक्ति के प्रति 'करुणा' अनुभव करने के साथ ही भय ( त्रास ) भी अनुभव करते हैं कि कहीं यह विपत्ति हम पर न आ जाय।
"We feel pity for a person who meets suffening beyond his deserts, we lentify overselves with the man suffering and thus fear is awakened."
विरेचन की दो स्थितियों 'करुणा' और 'त्रास' में से 'त्रास' की स्थिति विरेचन सिद्धान्त और हार से थोडी भिन्न है। क्योंकि व्यावहारिक जीवन में हम अपने ऊपर आयी विपत्तियों से ही पीड़ा का भव करते हैं जबकि दर्शक के रूप में हम पात्र की विपत्तियों को देखकर भी संभावित पीड़ा से पीड़ित उठते हैं। इसे सहानुभूतिजनित कम्पन स्वीकार किया गया, जो उस पात्र की पीड़ा को देखकर उभरता जिसका जीवन लगभग हमारे समान होता है -
"It is the sympathetic shudder we feel for a hero whose character in essentials resembles ours own."
इस सहानुभूति जनित कम्पन का आधार जहाँ भारतीय साधरणीकरण को स्पर्श करता है, वहीं प्रो. वूचर ने इस सम्बन्ध में दो धारणाएँ प्रस्तुत की हैं -
(1) 'स्व' की क्षुद्रता से मुक्ति : जब संकुचित 'स्व' अपने मूल रूप 'क्षुद्र' और 'कटु' का परित्याग करके विस्तृत, विशाल और उदात्त हो जाता है तो यह सहानुभूति की भावना से अधिक मात्रा में प्रेरित हो उठता है। नाटक के नायक की पीड़ा, खलनायक द्वारा दिये त्रास, अत्याचार, आदि हमारे मन में करुणा, आक्रोश, उत्तेजना आदि के भाव जगाते हैं तो वहाँ 'स्व' के विकास का ही रूप दिखाई देता है। हमारा संकुचित 'स्व' विकसित होकर नायक के साथ तादाम्य स्थापित करके उसके प्रति सहानुभूति जगा देता है, वहीं 'सत्' के प्रति आस्था भी उभरती है कि 'असत्' 'सत्' को पीड़ा पहुँचा रहा है। यह आस्था व्यक्ति के माध्यम से हमारे 'स्व' को समष्टिगत कर देती है।
(2) कलात्मक प्रक्रिया : उनका तर्क है कि त्रासदी का कलात्मक रूप सुखद होता है। 'दुःख' 'सुख' में बदल जाता है।
डॉ. नगेन्द्र इन दोनों सिद्धान्तों की आलोचना करते हुए कहते हैं कि यदि ये सिद्धान्त अरस्तू को मान्य होते तो उन्होंने इनका विवेचन अपने मत में कहीं न कहीं अवश्य किया होता। अतः विरेचन आनन्द की भूमिका है, आनन्द नहीं क्योंकि उसमें सुख का केवल भावात्मक रूप रहता है अर्थात् मनः शान्ति और विशदता।
इस संक्षिप्त विवरण से यह ध्वनित होता है कि उसमें 'मनः शान्ति और विशद्ता दो भाव तो निहित रहते ही हैं और ये दोनों भाव भी 'आनन्द' की स्थिति के निकट हैं। इस प्रकार भारतीय रस सिद्धान्त के आनन्दवादी दृष्टिकोण से यदि विरेचन सिद्धान्त की कहीं समता ठहरती है तो 'भावों के परिष्कार के माध्यम से मनः शान्ति और विशदता के माध्यम से 'क्योंकि वह 'विशदता' का भाव भारतीय साधारणीकरण के निकट आ खड़ा होता है।
त्रासदी विरेचन और करुण रस : विरेचन जिस त्रासदी को महत्व देता है, उसमें 'करुण और 'त्रास' दोनों की प्रधानता होती है। ये मूलतः दुख मनोवेग के आवेग ही हैं जिनमें पीड़ा की अनुभूति की प्रधानता भी है।
'करुण' रस का स्थायी भाव 'शोक' है। इस 'शोक' में 'करुणा' की भावना तो रहती है और वध आदि के कारण उत्पन्न शोक त्रास भी उत्पन्न करता है। 'नाट्यशास्त्र के अनुसार, शोक से तात्पर्य है शोक नाम का भाव इष्ट वियोग, विभवनाश, वध, कैद तथा दुखानुभूति आदि विभावों से उत्पन्न होता है। अतः करुण रस में शोक और करुणा का भाव दोनों रहते हैं। इस दृष्टि से इन दोनों में समता स्वीकार की जा सकती है।
दूसरी ओर करुण रस का स्थायी भाव 'शोक' है और भयानक का 'भय' जबकि विरेचन के अनुसार 'करुणा' और 'त्रास' एक साथ दिखाये गये हैं, दूसरे करुण रस का 'शोक' हर बार 'त्रास' उत्पन्न भी नहीं करता जैसे इष्ट वियोग से शोक तो होगा 'त्रास' नहीं, अतः इनमें विषमता भी है।
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- प्रश्न- काव्य के प्रयोजन पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भारतीय आचार्यों के मतानुसार काव्य के प्रयोजन का प्रतिपादन कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी आचायों के मतानुसार काव्य प्रयोजन किसे कहते हैं?
- प्रश्न- पाश्चात्य मत के अनुसार काव्य प्रयोजनों पर विचार कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी आचायों के काव्य-प्रयोजन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए?
- प्रश्न- आचार्य मम्मट के आधार पर काव्य प्रयोजनों का नाम लिखिए और किसी एक काव्य प्रयोजन की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय आचार्यों द्वारा निर्दिष्ट काव्य लक्षणों का विश्लेषण कीजिए
- प्रश्न- हिन्दी के कवियों एवं आचार्यों द्वारा प्रस्तुत काव्य-लक्षणों में मौलिकता का अभाव है। इस मत के सन्दर्भ में हिन्दी काव्य लक्षणों का निरीक्षण कीजिए 1
- प्रश्न- पाश्चात्य विद्वानों द्वारा बताये गये काव्य-लक्षणों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- आचार्य मम्मट द्वारा प्रदत्त काव्य-लक्षण की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- रमणीयार्थ प्रतिपादकः शब्दः काव्यम्' काव्य की यह परिभाषा किस आचार्य की है? इसके आधार पर काव्य के स्वरूप का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- महाकाव्य क्या है? इसके सर्वमान्य लक्षण लिखिए।
- प्रश्न- काव्य गुणों की चर्चा करते हुए माधुर्य गुण के लक्षण स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- मम्मट के काव्य लक्षण को स्पष्ट करते हुए उठायी गयी आपत्तियों को लिखिए।
- प्रश्न- 'उदात्त' को परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- काव्य हेतु पर भारतीय विचारकों के मतों की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- काव्य के प्रकारों का विस्तृत उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- स्थायी भाव पर एक टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- रस के स्वरूप का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- काव्य हेतु के रूप में निर्दिष्ट 'अभ्यास' की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- 'रस' का अर्थ स्पष्ट करते हुए उसके अवयवों (भेदों) का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- काव्य की आत्मा पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- भारतीय काव्यशास्त्र में आचार्य ने अलंकारों को काव्य सौन्दर्य का भूल कारण मानकर उन्हें ही काव्य का सर्वस्व घोषित किया है। इस सिद्धान्त को स्वीकार करने में आपकी क्या आपत्ति है? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- काव्यशास्त्रीय सम्प्रदायों के महत्व को उल्लिखित करते हुए किसी एक सम्प्रदाय का सम्यक् विश्लेषण कीजिए?
- प्रश्न- अलंकार किसे कहते हैं?
- प्रश्न- अलंकार और अलंकार्य में क्या अन्तर है?
- प्रश्न- अलंकारों का वर्गीकरण कीजिए।
- प्रश्न- 'तदोषौ शब्दार्थों सगुणावनलंकृती पुनः क्वापि कथन किस आचार्य का है? इस मुक्ति के आधार पर काव्य में अलंकार की स्थिति स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'काव्यशोभाकरान् धर्मान् अलंकारान् प्रचक्षते' कथन किस आचार्य का है? इसका सम्बन्ध किस काव्य-सम्प्रदाय से है?
- प्रश्न- हिन्दी में स्वीकृत दो पाश्चात्य अलंकारों का उदाहरण सहित परिचय दीजिए।
- प्रश्न- काव्यालंकार के रचनाकार कौन थे? इनकी अलंकार सिद्धान्त सम्बन्धी परिभाषा को व्याख्यायित कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी रीति काव्य परम्परा पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- काव्य में रीति को सर्वाधिक महत्व देने वाले आचार्य कौन हैं? रीति के मुख्य भेद कौन से हैं?
- प्रश्न- रीति सिद्धान्त की अन्य भारतीय सम्प्रदायों से तुलना कीजिए।
- प्रश्न- रस सिद्धान्त के सूत्र की महाशंकुक द्वारा की गयी व्याख्या का विरोध किन तर्कों के आधार पर किया गया है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- ध्वनि सिद्धान्त की भाषा एवं स्वरूप पर संक्षेप में विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- वाच्यार्थ और व्यंग्यार्थ ध्वनि में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'अभिधा' किसे कहते हैं?
- प्रश्न- 'लक्षणा' किसे कहते हैं?
- प्रश्न- काव्य में व्यञ्जना शक्ति पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- संलक्ष्यक्रम ध्वनि को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- दी गई पंक्तियों में में प्रयुक्त ध्वनि का नाम लिखिए।
- प्रश्न- शब्द शक्ति क्या है? व्यंजना शक्ति का सोदाहरण परिचय दीजिए।
- प्रश्न- वक्रोकित एवं ध्वनि सिद्धान्त का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- कर रही लीलामय आनन्द, महाचिति सजग हुई सी व्यक्त।
- प्रश्न- वक्रोक्ति सिद्धान्त व इसकी अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- वक्रोक्ति एवं अभिव्यंजनावाद के आचार्यों का उल्लेख करते हुए उसके साम्य-वैषम्य का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- वर्ण विन्यास वक्रता किसे कहते हैं?
- प्रश्न- पद- पूर्वार्द्ध वक्रता किसे कहते हैं?
- प्रश्न- वाक्य वक्रता किसे कहते हैं?
- प्रश्न- प्रकरण अवस्था किसे कहते हैं?
- प्रश्न- प्रबन्ध वक्रता किसे कहते हैं?
- प्रश्न- आचार्य कुन्तक एवं क्रोचे के मतानुसार वक्रोक्ति एवं अभिव्यंजना के बीच वैषम्य का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- वक्रोक्तिवाद और वक्रोक्ति अलंकार के विषय में अपने विचार व्यक्त कीजिए।
- प्रश्न- औचित्य सिद्धान्त किसे कहते हैं? क्षेमेन्द्र के अनुसार औचित्य के प्रकारों का वर्गीकरण कीजिए।
- प्रश्न- रसौचित्य किसे कहते हैं? आनन्दवर्धन द्वारा निर्धारित विषयों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- गुणौचित्य तथा संघटनौचित्य किसे कहते हैं?
- प्रश्न- प्रबन्धौचित्य के लिये आनन्दवर्धन ने कौन-सा नियम निर्धारित किया है तथा रीति औचित्य का प्रयोग कब करना चाहिए?
- प्रश्न- औचित्य के प्रवर्तक का नाम और औचित्य के भेद बताइये।
- प्रश्न- संस्कृत काव्यशास्त्र में काव्य के प्रकार के निर्धारण का स्पष्टीकरण दीजिए।
- प्रश्न- काव्य के प्रकारों का विस्तृत उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- काव्य गुणों की चर्चा करते हुए माधुर्य गुण के लक्षण स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- काव्यगुणों का उल्लेख करते हुए ओज गुण और प्रसाद गुण को उदाहरण सहित परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- काव्य हेतु के सन्दर्भ में भामह के मत का प्रतिपादन कीजिए।
- प्रश्न- ओजगुण का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- काव्य हेतु सन्दर्भ में अभ्यास के महत्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- काव्य गुणों का संक्षित रूप में विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- शब्द शक्ति को स्पष्ट करते हुए अभिधा शक्ति पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- लक्षणा शब्द शक्ति को समझाइये |
- प्रश्न- व्यंजना शब्द-शक्ति पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- काव्य दोष का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- नाट्यशास्त्र से क्या अभिप्राय है? भारतीय नाट्यशास्त्र का सामान्य परिचय दीजिए।
- प्रश्न- नाट्यशास्त्र में वृत्ति किसे कहते हैं? वृत्ति कितने प्रकार की होती है?
- प्रश्न- अभिनय किसे कहते हैं? अभिनय के प्रकार और स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- रूपक किसे कहते हैं? रूप के भेदों-उपभेंदों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कथा किसे कहते हैं? नाटक/रूपक में कथा की क्या भूमिका है?
- प्रश्न- नायक किसे कहते हैं? रूपक/नाटक में नायक के भेदों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- नायिका किसे कहते हैं? नायिका के भेदों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- हिन्दी रंगमंच के प्रकार शिल्प और रंग- सम्प्रेषण का परिचय देते हुए इनका संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- नाट्य वृत्ति और रस का सम्बन्ध बताइए।
- प्रश्न- वर्तमान में अभिनय का स्वरूप कैसा है?
- प्रश्न- कथावस्तु किसे कहते हैं?
- प्रश्न- रंगमंच के शिल्प का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- अरस्तू के 'अनुकरण सिद्धान्त' को प्रतिपादित कीजिए।
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- प्रश्न- मुख्य कल्पना किसे कहते हैं?
- प्रश्न- मुख्य कल्पना और गौण कल्पना में क्या भेद है?
- प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के काव्य-भाषा विषयक सिद्धान्त पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- 'कविता सभी प्रकार के ज्ञानों में प्रथम और अन्तिम ज्ञान है। पाश्चात्य कवि वर्ड्सवर्थ के इस कथन की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के कल्पना सम्बन्धी विचारों का संक्षेप में विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के अनुसार काव्य प्रयोजन क्या है?
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- प्रश्न- रिचर्ड्स का मूल्य-सिद्धान्त क्या है? स्पष्ट रूप से विवेचन कीजिए।
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- प्रश्न- रिचर्ड्स के अनुसार सम्प्रेषण का क्या अर्थ है?
- प्रश्न- रिचर्ड्स के अनुसार कविता के लिए लय और छन्द का क्या महत्व है?
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- प्रश्न- टी. एस. इलियट के प्रमुख सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए। इसका हिन्दी साहित्य पर क्या प्रभाव पड़ा है?
- प्रश्न- सौन्दर्य वस्तु में है या दृष्टि में है। पाश्चात्य समीक्षाशास्त्र के अनुसार व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी आलोचना के उद्भव तथा विकासक्रम पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- स्वच्छंदतावाद से क्या तात्पर्य है? उसका उदय किन परिस्थितियों में हुआ?
- प्रश्न- साहित्य में मार्क्सवादी समीक्षा का क्या अभिप्राय है? विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिक साहित्य में मनोविश्लेषणवाद के योगदान की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- आलोचना की पारिभाषा एवं उसके स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- हिन्दी की मार्क्सवादी आलोचना पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- हिन्दी आलोचना पद्धतियों को बताइए। आलोचना के प्रकारों का भी वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- स्वच्छंदतावाद के अर्थ और स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- मनोविश्लेषवाद की समीक्षा दीजिए।
- प्रश्न- मार्क्सवाद की दृष्टिकोण मानवतावादी है इस कथन के आलोक में मार्क्सवाद पर विचार कीजिए?
- प्रश्न- नयी समीक्षा पद्धति पर लेख लिखिए।
- प्रश्न- विखंडनवाद को समझाइये |
- प्रश्न- यथार्थवाद का अर्थ और परिभाषा देते हुए यथार्थवाद के सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- कलावाद किसे कहते हैं? कलावाद के उद्भव और विकास पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- बिम्बवाद की अवधारणा, विचार और उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- प्रतीकवाद के अर्थ और परिभाषा का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संरचनावाद में आलोचना की किस प्रविधि का विवेचन है?
- प्रश्न- विखंडनवादी आलोचना का आशय स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- उत्तर-संरचनावाद के उद्भव और विकास को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की काव्य में लोकमंगल की अवधारणा पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी की आलोचना दृष्टि "आधुनिक साहित्य नयी मान्यताएँ" का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- "मेरी साहित्यिक मान्यताएँ" विषय पर डॉ0 नगेन्द्र की आलोचना दृष्टि पर विचार कीजिए।
- प्रश्न- डॉ0 रामविलास शर्मा की आलोचना दृष्टि 'तुलसी साहित्य में सामन्त विरोधी मूल्य' का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की आलोचनात्मक दृष्टि पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी जी की साहित्य की नई मान्यताएँ क्या हैं?
- प्रश्न- रामविलास शर्मा के अनुसार सामंती व्यवस्था में वर्ण और जाति बन्धन कैसे थे?